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कविता- इंसान मे जानवर

कविता- इंसान मे जानवर
हाथी एक जानवर मगर
इंसान की इंसानियत ढोता रहा |
थके मांदे एक शेर के बच्चे को
अपनी सुंढ मे ढोता रहा |
इंसान कहने को आदमी मगर
जानवर से बदतर होता जा रहा |
गर्भवती हथिनी को
बम भरा फल खिलाये जा रहा |
दर्द की हद को हराने
जल के अंदर साँसे रोक
मुंह को जल मे सुबाए
पानी और पानी पिता रहा |
खड़े खड़े अपनी जिंदगी की
साँसे रोके जा रहा |
पशु हिंसक हो सकता था
कितनों को रौंद सकता था
मगर दर्द सारा खुद सह लिया |
तोड़ अपने साँसे
दुनिया से बिदा हो लिया |
सम्झना मुश्किल है
जानवर इंसान बन गया
या जानवर मे इसान जिंदा हो रहा |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286

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