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कविता बहती है

कविता बहती है

कविता तो केवल व्यथा नहीं,
निष्ठुर, दारुण कोई कथा नहीं,
या कवि शामिल थोड़ा इसमें,
या तू भी थोड़ा, वृथा नहीं।
सच है कवि बहता कविता में,
बहती ज्यों धारा सरिता में,
पर जल पर नाव भी बहती है,
कविता तेरी भी चलती है।

कविता कवि की ही ना होती,
कवि की भावों पे ना चलती,
थोड़ा समाज भी चलता है,
दुख दीनों का भी फलता है।
जिसमें कोरी हीं गाथा हो,
स्वप्निल कोरी हीं आशा हो,
जिसको सच का भान नहीं,
वो कोरे शब्द हैं प्राण नहीं।

केवल करने से तुक बंदी,
चेहरे पे रखने से बिंदी,
कविता की मुरत ना फलती,
सुरत मन मुरत ना लगती।
जिसको तुम कहते हो कविता,
बेशक वो होती है सरिता,
इसको बेशक कवि गढ़ता है,
पर श्रोता भी तो बहता है।

बिना श्रोता के आन नहीं,
कवि कवि नहीं, संज्ञान नहीं,
जैसे कवि बहुत जरूरी है,
बिन श्रोता के ये अधूरी है।
कवि के प्राणों पे चलती है,
कविता श्रोता से फलती है,
कवि इनको शीश नवाता है,
कविता के भाग्य विधाता है।
कविता के जो निर्माता है,
कविता के ये निर्माता है।

अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित

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