कवि का ‘सरयू से ‘ गुजरना – सुरेंद्र वाजपेयी
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सुहृदयी कवि ,लेखक एवं सामाजिककार्यकर्ता श्री सुखमंगल सिंह कृत्य ‘कवि हूँ मैं सरयू तट का ‘ एक भावनात्मक काव्य संग्रह है | इसमें सरयू महिमा के साथ- साथ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम की जन्मस्थली उनकी प्रिय नगरी अयोध्या की प्राकृतिक ,सामाजिक ,आध्यात्मिक एवं मानवीय सरोकारों एवं समरसता से परिपूर्ण रचनाएं मर्म स्पर्शी एवं पठनीय हैं |
कवि हूँ मैं सरयू- तट का
समय चक्र के उलट -पलट का
मानव मर्यादा की खातिर
मेरी अयोध्या खड़ी हुई है
कालचक्र के चक्कर से ही
विश्व की आँखें गड़ी हुई है ,
हाल ये जाने है घट -घट का
हूँ कवि मैं सरयू – तट का
इसमें सूर्यवंश के कुलशिरोमणि श्रीराम के अवतार थे साथ-साथ रघुकुलवंश का गान ,ऋषियों की अमरवाणी ,परब्रह्म प्राप्ति का मार्ग,परम पावन सरयू नदी का माहात्म्य
आदि के सहित आततायियों से पृथ्वी को मुक्त करने की भावना का जागरण किया है | कवि ने निस्पृह भाव से इस काव्य की लोकमंगल और जान-जागरण का कार्य किया है | भारतीय संस्कृति और संस्कार से परिचित कराकर नई पीढ़ी को जीवन मूल्यों और जीवनादर्शों की ओर झांकने ,सोचने और विचारने का आह्वान किया है |
अतः ‘सरयू तट से ‘ रचनाकार का तादात्म्य स्थापित करना तथा लोकजीवन को प्रभुश्रीराम के प्रति आस्थावान बनाना विशेष हितकारी है | आशा है, काव्य के सुधी पाठकों के बीच संग्रह पढ़ा जाएगा और स्नेह- सम्मान भी प्राप्त करेगा | बधाई |
ह ० सुरेन्द्र वाजपेयी
— समीक्षक लेखक ,,व्यंग,नव गीत
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सी २१/३० पिशाचमोचन ,
वाराणसी -२२१०१०
उत्तर प्रदेश – भारत