सारे पिंजरे तोड़ चुका वो
. मन की मर्जी से जीता है.
कवि तो उड़ता पंछी है जो
उमंगो के आसमान मे उड़ता है
कवि तो बहुत ही प्यासा है
बस भावनाओ मे बहती नदी का पानी पीता है
शान से वो रहता है
कलम की डाल पर बैठकर
सकून के पल वो जीता है
सारे पिंजरे तोड़ चुका वो
. मन की मर्जी से जीता है.
कवि तो उड़ता पंछी है जो
उमंगो के आसमान मे उड़ता है
कवि तो बहुत ही प्यासा है
बस भावनाओ मे बहती नदी का पानी पीता है
शान से वो रहता है
कलम की डाल पर बैठकर
सकून के पल वो जीता है