मौसम सुहान होते ही
मिजाज उनका आशिकाना होने लगता है
साँझ ढलते ही हर कवि शायराना होने लगता है
कितना भी संभालो इन उंगलियों को
हाथ जाकर कलम को छूने लगता है.
शायद ये कोई
शमा का परवाना कोई लगता है
मौसम सुहान होते ही
मिजाज उनका आशिकाना होने लगता है
साँझ ढलते ही हर कवि शायराना होने लगता है
कितना भी संभालो इन उंगलियों को
हाथ जाकर कलम को छूने लगता है.
शायद ये कोई
शमा का परवाना कोई लगता है