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कहा तलाशे नारी अपना मान… मिले कहा उसे उसका उचित स्थान

दिया जल कर कभी बुझने नहीं दिया उम्मीद का..
भुला कर खुद को कर दिया रोशन नारी ने जिस जहाँ को..
काश वो कभी खुद भी उस जहा में सम्मान से जी पाती..
हर रिश्ते को मान देने वाली कभी अपनी आन बचा पाती.
जीवन देने वाली जननी,तो कभी जीवन सगनी अर्धाग्नि..
हर रिश्ते को जिसने आँचल की छाव में खून से था सींचा..
वाही नारी आज भी देती अग्नि परीक्षा बानी सीता..
क्यों मोन रह जाते सब नारी के अपमान में…
इंसान बन क्यों नहीं जीन देते उसे सम्मान  में..
जिस माँ और बहन मिलना चाहिए ताज सा मान..
मिला तो सिर्फ उसे अल्प बुद्धि लोगो की गालियो में स्थान.
कहा तलाशे नारी अपना मान… मिले कहा उसे उसका उचित स्थान…

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