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कहीं कोई इक लफ़्ज ही खिल जाये

कोई आफ़ताब तो नहीं जिंदगी में
कहीं कोई दीया ही जल जाये
कोई कविता हम कह नहीं पा रहे है
कहीं कोई इक लफ़्ज ही खिल जाये

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