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कामकाजी महिला

सुबह के चार जैसे ही बजते हैं
आँखें उसकी खुल जाती हैं
इधर से उधर,उधर से इधर
साफ़ सफाई से शुरुआत है करती
खाना बना के सबको रखती
बच्चों को विद्यालय छोड़ती
नौकरी को तैयार हो जाती
दस से पाँच के कर्तव्य निभाती
घर आ कर फिर काम में लगती
बच्चों को गृहकार्य करवाती
फिर शाम का भोजन बनाती
परिजन के साथ मिल कर खाती
बच्चों को मीठी नींद सुलाती
थक हार कर फिर खुद सो जाती
अगले दिन फिर जल्दी उठ जाती।।

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