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काश!

काश भ्रष्टाचार न होता ,फिर भलों का दिल न रोता
कानून ढंग से काम करता, काश भ्रष्टाचार न होता।
लोकतंत्र भ्रष्ट न होता, रिश्वत का तो नाम न होता
संसद ढंग से काम करता, काश भ्रष्टाचार न होता।
होता चहुँ और निष्पक्ष विकास ,फैलता स्वतंत्र विकास
होता हर चेहरे पर उल्लास, भ्रष्टाचार न होता काश।
फैली होती हर जगह समानता, शिक्षक ढंग से भविष्य तराशता
कोई जॉब के बदले घूस न लेता, काश भ्रष्टाचार न होता।
भारत विजयपताका लहराता, हर दिन विजयदिवस मनाता
दो जून की रोटी निष्पक्ष कमाता, काश भ्रष्टाचार न होता।
By-
सुश्री मानसी राठौड़ d/o
रविन्द्र सिंह राठौड़

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