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कितना कहर ढाया होगा

आज आंखों ने कितना कहर ढाया होगा
देखकर, फौजी बेटे का धड़
माँ का दिल भर आया होगा
पिलाने को अंतिम स्नेह अमृत
बुझाने को ममतामयी प्यास
उसके पावन स्तनों का दूध
आज फिर उतर आया होगा
आज आंखों ने कितना कहर ढाया होगा
उठता नहीं है बोझ तिनके का भी
बुढ़ापे में उस जर्जर बाप से
किस कदर उसने
बेटे का शव उठाया होगा
उठाकर कांधे पे कैसे
उसने चिता पर लिटाया होगा
देकर मुखाग्नि उसको
क्या सागर की गहराई सा
दिल उसका भर नहीं आया होगा
आज आंखों ने कितना कहर ढाया होगा।
मेहंदी से रचे हाथ
चूड़ियों का लाल रंग
उस विधवा के हाथों से उतर
उसकी आँखों में भर आया होगा
देखकर सर कटी पति की लाश
उसका सुकोमल सा दिल
कितनी जोर-जोर से चिल्लाया होगा
आज आंखों ने कितना कहर ढाया होगा।
जिन्दा तो रोए, निर्जीवों ने भी शोक मनाया होगा
उस बिछुड़े साथी को बुलाने
दीवारों, छतों, आंगनों ने भी
खूब शोर मचाया होगा
आज आंखों ने कितना कहर ढाया होगा।
Dharamveer Vermaधर्म

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