किसी ने कहा ,लिखते क्यों हो?
मैंने कहा नहीं लिखता तो कहते
कुछ लिखते क्यों नहीं?
अपनी सोच को कलम में भर के
लिखने को कोशिश कर रहा हूँ
क्या करते हो ?
सुरंग बनाता हूँ
जो हर लिखने वाला बनाता है
अपने और दुनिया के बीच
चल सके वो उस भीड़ भरे
रास्तों से भिन्न
उन रास्तों से अलग जहां
पहचाने नहीं जाते ,
अपने ही क़दमों के निशां
बस रोंदते चलते है सड़को पर
एक दूसरे के क़दमों के निशां
चीखती चिल्लाती सड़कों पर
भागते रास्तों में गुम
ज़िंदगी की तलाश
करता हूँ इस सुरंग में
कुछ दबे हुए से पत्थरों
को तराशता हूँ
अपने लिए नई राह बनाता हूँ
अंदर की सिसकियों को
तस्सली देने का कारोबार करता हूँ
सन्नाटों को मुर्गा बन
बांग देता हूँ
शायद सवेरे का एहसास हो
इन सन्नाटों को
सुरंग के ऊपर बसी दुनिया
को बस महसूस करता हूँ
सुरंग ही है मेरा रास्ता
जिससे निकल मैं मिलता हूँ
अपने और अपने लोगों से
आप अब मत पूछिए
मैं करता क्या हूँ ?
राजेश’अरमान’
२३/०४/१९९१