किसी रोज़ सब साथ होंगे
मिलेंगे, बैठेंगे, जुमले फरमाएंगे
एक कप चाय के साथ
फिर भिड़ जायेंगे
वही कल जो बीत गया
फिर से दोहराएंगे
वो बातें जो अधूरी रह गयी
उन्हें पूरा करने आएंगे
वो शाम जो कभी ढल गयी थी ..
वो शाम फिर से लाएंगे
वो वक़्त
जो उस वक़्त रुका नहीं था
उस वक़्त को ठहराएंगे
अपनी अपनी किस्सो की
कहानी के किरदार
फिर से निभाएंगे
वो आंख जो नम-सी थी
अब..
हल्का सा रो जायेंगे
वो जुबां जो कभी रूकती न थी
आज कुछ बोल नहीं रही ..
उस उम्र का वो लड़कपन
फिर से जी जायेंगे
कोई रोया हो या कोई किसी के दर्द में झुलसा हो
खिल्ली सबकी उड़ाएंगे
वो मन जो कभी बच्चा था
फिर उस पल में लौट आएंगे
उस चुप रहने वाले आशिक़ को फिर से थोड़ा सतायेंगे
उन बीती यादों को लेकर
नई याद बनाएंगे
अपनी कट रही ज़िन्दगी का
हाल-ए-बयां सुनाएंगे
जो प्यार अधूरा रह गया
उस पर
ज़रा मुस्करायेंगे
वो यारी जो सदा के लिए रह गयी उस पर नाज़ जताएंगे
वो दूरी जो बनाई है
उसे उसी पल मिटायेंगे
किसी शाम उस रुख़सत को
फिर से यूँ दोहराएंगे
किसी रोज़ जब साथ होंगे
तब वो पुरानी ज़िन्दगी बिताएंगे
– Vijay Maloo
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