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“किस वज़ह से मिली है ये तन्हाई हमको”

किस वज़ह से मिली है ये तन्हाई हमको।
दिखतीं ही नहीं है ख़ुद की परछाईं हमकों।।
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सदियों पहले किसी ने पुकारा था हमें भी।
वो आवाज़ आज तक देती है सुनाई हमको।।
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न तेरे काबिल हुए न खुद के ही काबिल हुए।
महँगी पड़ी है खुद से खुद की लड़ाई हमको।।
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लाख कोशिशों के बावजूद तुम्हें भूल न पाए।
हर वक्त ही देती है तेरी तस्वीर दिखाई हमको।।
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ताउम्र याद करने की सज़ा क्यूँ दे गए हो हमें।
बहुत हुआ अब चाहिए इस सजा से रिहाई हमको।।
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कब तक लिखेंगे साहिल हल ए दिल यूँ ही।
की अब तो कम पड़ने लगी है रोशनाई हमको।।
@@@@RK@@@@

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