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कि दिल का हाल चेहरे से कुछ ब्यां न हो…

वो जब गली से गुजरें तो, कोई वहां न हो

घर के सिवाय मेरे कोई, घर खुला न हो।

बेहतर है कि दीवारों से, कुछ दूर ही मिलें

दीवारों के भी कान कहीं दरम्यां न हों।

मुमकिन है मिल रहीं हों, हाथों की लकीरें

पर बीच में तो कोई बुरा, ग्रह पड़ा न हो।

अब ये भी अदाकारियां, देता है इश्क ही

कि दिल का हाल चेहरे से कुछ ब्यां न हो।

ये डर भी साथ हो कि मोहब्बत की राह में

खाई तो पार कर लें, आगे कुआं न हो।

कितने ही दर्द इश्क के आंखों से बहेंगे

बस दिल जले तो ऐसे जले कि धुंआ न हो।

…………..सतीश कसेरा

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