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कुछ सामयिक दोहे

देश बना बाज़ार अब, चारो ओर दुकान
राशन है मँहगा यहाँ, सस्ता है ईमान

राजा- रानी तो गए, गया न उनका मंत्र
मतपेटी तक ही सदा, रहा प्रजा का तंत्र

सर्वाहारी क्यों इसे, बना दिया भगवान ?
ज़र,जमीन,पशु-खाद्य तक, खा जाता इंसान

गंगाएँ कितनी बहीं, ‘बुधिया’ रहा अतृप्त
जब जब है सूखा पड़ा, नेता सारे तृप्त

बापू , तुम लटके रहो, दीवारों को थाम
नमन तुम्हें कर नित्य हम, करते ‘अपना काम’

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