मन बूढ़ा हो गया
मगर ना मन की
पीर गई
सडकों पर ही
जन्म लिया और
सड़कों पर ही
मर गई,
कोढ़ की काठी,
कोढ़ की काया,
कोढ़ हुआ यह जीवन
मन खनके कितने
कंगना
मिल पाये ना साजन,
मिल पाये ना साजन
ऐसा रूप ही पाया
देखा सबने हँसकर
बस माखौल उड़ाया
अब भी दिल के अंगारे
अक्सर जल पड़ते हैं
ना मिलते दो पैसे
भूख से हम
मरते हैं।।