कृषक हमारा दुखी है
फसल नहीं हो पाई
पानी दिया था, बीज बोए थे,
की थी खूब रोपाई
फिर भी ना उपजा अन्न
आया ऐसा मानसून
बाढ़ में सारी फसल हुई बर्बाद
रोटी भी ना हो पाई दो जून
क्या खुद खाते, क्या बच्चों को खिलाते
प्रश्न यही था
मस्तिष्क में घूम रहा
नहीं उत्तर कोई सूझा
बस एक ही चढ़ा जुनून
मार दिया हमने खुद को
कर दिया हालात के आगे समर्पण
करते भी तो क्या करते
जब जीवन में थी इतनी अर्चन।।