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कोयल का स्वर

सब तरफ हरा-भरा है
खूब रौनक सी सजी है,
फूल-पत्ती की छठा,
रोज बढ़ने में लगी है।
है उसे भी आस सावन
जल्द आयेगा,
तृप्त करने प्यास हिय की
नीर लायेगा।
बीज से अंकुर उग
बाहर झाँकने लगा है,
कवि भी अपनी स्याही को
आँकने लगा है,
दूर किसी कोयल का स्वर
लिखने को
प्रेरित कर रहा है,
सावन के आगमन का दृश्य
अभी से मन को मोहित कर रहा है।

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