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कोरोना  के  हाथों  हारे ईश्वर से क्या कहे बेचारे?

कोरोना महामारी के हाथों भारत में अनगिनत मौतें हो रही हैं। सत्ता पक्ष कौए की तरह और अधिक सत्ता पाने के लालच में इन भयंकर परिस्थितियों में भी चुनाव पे चुनाव कराती जा रही है तो विपक्ष गिद्ध की तरह मृतकों के संख्या की गिनती करने में हीं लगा हुआ है। इन कौओं और गिद्धों की प्रवृत्ति वाले लोगों के बीच मजदूर और श्रमिक पिसते चले जा रहे है। मजदूर दिवस केवल मनाने के लिए नहीं होता, अपितु मजदूरों की बेहतरी के निमित्त होता है । परन्तु आज के माहौल में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मजदूर दिवस के अवसर पर इन कौओं और गिद्धों की तरह के अवसरवादी सोच रखने वाली राजनैतिक पार्टियों के बीच बदहाली बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धा हो रही है। ये सारे अवसरवादी इस सुनहले अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहते। मजदूर दिवस पर  आम जनता खासकर मज़दूरों और श्रमिकों की बदहाली पर प्रकाश डालती हुई कविता “कोरोना  के  हाथों  हारे ईश्वर से क्या कहे बेचारे?”

गाँव पहले हीं छोड़ चुके सब शहर हुआ बेगाना,
सोया शेर फिर उठ उठ आता कोरोना अनजाना,
पिछली बार हीं पैदल चल कर गर्दन टूट पड़ी सारी,
क्या फिर पैदल जाना होगा क्या फिर होगी लाचारी?

राशन भाषण आश्वासन मन को तो अच्छा लगता है,
छले गए कई बार फिर छलते वादा कच्चा लगता है।
तन टूटा है मन रूठा है पक्ष विपक्ष सब लड़ते है,
जो सत्ता में लाज बचाते प्रतिपक्ष जग हंसते हैं।

प्रतिपक्ष का काम नहीं केवल सत्ता पर चोट करें,
जनता भूखी मरती है कोई कुछ भी तो ओट करें। 
या गिद्ध बनकर बैठे रहना हीं है इनका काम यही,
या उल्लू दृष्टि को है संशय ना हो जाए निदान कहीं?

गिद्धों का मजदूर दिवस है कौए सब मुस्काते हैं,
कितने मरे है बाकी कितने गिनती करते जाते हैं।
लाशों के गिनने से केवल भला किसी का क्या होगा,
गिद्ध काक सम लोटेंगे उल्लू सम कोई खिला होगा।

जनता तो मृत सम जीती है बन्द करो दोषारोपण,
कुछ तो हो उपाय भला कुछ तो कम होअवशोषण।
घर से बेघर है पहले हीं  काल ग्रास के ये प्यारे। 
कोरोना  के  हाथों  हारे ईश्वर से क्या कहे बेचारे?

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित

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