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कोहिनूर

कभी हीर ने मुझे राँझा कहकर पुकारा था,
इश्क़ मे मैने खुद को हीरे- सा तराशा था।
दुनिया की खातिर वह तो मुझे ठुकरा गये,
जीते जागते इन्सान को पत्थर-सा बना गये।
कौन यहाँ इस पत्थर को अब भगवान मानता है,
तू भी तो नही कोहिनूर की कीमत को जानता है।

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