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क्या बताता

 कविताक्या बताता

तब आधी रात होने की कगार पर खड़ी थी

लेकिन वो थी कि अपने सवाल पर अडी थी

पूंछती थी कितनी मोहब्बत मुझसे करते हो

सब झूठा खेल है या सच में मुझपर मरते हो

यह सवाल उस वक्त जब सारी दुनिया सोती है

कैसे बताता क्या इश्क दिखाने की चीज होती है |1|

रह रह कर उसका पूंछना मुझे मारे डालता था

पता नही कैसे उस वक्त खुद को सम्हालता था

खुबसूरत तो थी वो लेकिन बुद्धू भी खूब थी

कुछ भी हो जालिम जमाने वो मेरी महबूब थी

यह सोचना वहां पर जहाँ सडक भीड़ ढोती  है

कैसे बताता क्या इश्क दिखाने की चीज होती है |2|

बार बार बालों को सम्हाल कर मुझको देखना

नजर चेहरे पर थी मकसद था दिल को कुरेदना

में उसमें खोया था वो मेरा जबाब तलाश करती थी

मेरी उम्र पच्चीस की थी वो अठरह से कम लगती थी

हाय यह बताना उसको जो बात बात पर रोती है

कैसे बताता क्या इश्क दिखाने की चीज होती है |3|

उसके सवाल से तंग आ मैंने बोल ही दिया

असली नकली के तराजू में तोल ही दिया

मोहब्बत तुमसे कितनी है ये तो नही जानता हूँ

जैसी कैसी भी हो तुम दिल से अपनी मानता हूँ

यह सुनना उसका फिर लिपट मुझमें खोती है

कैसे बताता क्या इश्क दिखाने की चीज होती है |4|

    [समाप्त]

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