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क्या वजूद है मेरा

कौन हूँ मैं, और क्या वजूद है मेरा।
जहाँ में क्या पहचान मौजूद है मेरा।

शायद ऊँचा कोई मुकाम पा न सका,
और कोई नहीं, ये कसुर खुद है मेरा।

गर कोई पूछे, क्या हासिल किया तूने,
ताले पड़ गए, जुबाँ दम-ब-खुद है मेरा।

शराफत को लोग कमजोरी समझ बैठे,
किसी का दिल ना टूटे मक़्सूद है मेरा।

कई दफा धोखा खा चुका ‘देव’, फिर भी,
यकीन करने का दिल बावजूद है मेरा।

देवेश साखरे ‘देव’
दम-ब-खुद- शांत, मक़्सूद- उद्देश्य,

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