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क्रांति की धारा

मेरे देश मुझे तेरे आंचल में
अब रहने को दिल करता है
जो जख्म दिए अंगारों ने
उसे सहने को दिल करता है

कांटो पर जब तू चलता था
हम चैन से घर में सोते थे
हम देश पराए जाते थे
तेरी आंख में आंसू होते थे

क्रांति की आग में अर्थी थी
यह खून से रंग दी धरती थी
हर मां की आंख में आंसू थे
चौराहे लाश गुजरती थी

सीने पर जख्म हजारों थे
सुनसान यह गलियां रहती थी
यह वेद कुरान भी ठहर गए
आंसू की नदियां बहती थी

मैंने हिमालय की धरती पर
सिंहासन लगाकर देखा था
हथियार की महफिल सजतिथी
हर गली में बैठा पहरा था

यह धरती फिर आजाद हुई
इसे थाम लिया रणधीरओं ने
विजय आजादी का आकर
आगाज किया था वीरों ने

आज विदेशी छोड़ दिया
स्वदेशी का आगाज हुआ
है मेरा नमन उन वीरों को
जिसने भारत आजाद किया

🇹🇯 जय हिंद 🇹🇯

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