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क्षणिका

क्षणिका ?:–

जब गम सताता है,
गाने मैं गुनगुनाता हूं ।
जब ददं रुलाता है,
तराने मैं सजाता हूँ ।।
(1)
जब रंज बढ आता है,
रंगीला मन मै हो जाता हूं ।
जब जख्म गहराता है,
मस्ती मगन मै बो जाता हूँ।।
(2)
देती है पीड़ा जब चुभन,
चुप्पी का राग बन जाता हूं ।
व्यथा करती है जब भी आहत,
प्यार का पराग बन जाता हूँ ।।
(4)
मालूम है मुझे इंसान हूँ मैं!
मानवेत्तर ताग बन जाता हूँ ।
मिलती है चुनौती जब संघर्ष की करमो का आग बन जाता हूँ।।
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श्याम दास महंत
घरघोडा (रायगढ )
दिनांक 08 -03 -2018 ✍

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