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खलिश जितनी भी है

खलिश जितनी भी है
सारी उड़ेलूं सोचता है मन,
मगर प्रसन्नता की राह तो
यह भी नहीं पक्की।
चलो छोड़ो भी जाने दो
न आये नींद आंखों में
मगर कुछ चैन पाने को
जरूरी है जरा झपकी।

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