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ख़तावार

कोई तो बताये कहाँ है वो,
मुद्दत से उनका दीदार ना हुआ।
तड़प रहा हूँ मैं दिन-रात,
फिर कैसे कहूँ बेकरार ना हुआ।।

हमें तो कब से है इंतजार,
पर उन्हीं से इकरार ना हुआ।
दिन को सुकून ना रात को चैन,
फिर कैसे कहूँ प्यार ना हुआ।।

जब सामने उसे पाया तो,
खुद पे हमें एतबार ना हुआ।
कुछ भी ना कह सका उससे,
फिर कैसे कहूँ ख़तावार ना हुआ।।

देवेश साखरे ‘देव’

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