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“खामोशी “

ज़माना पुछता हैं चेहरे में गज़ब की कशीश- ए-खामोशी हैं_

कैसे कहे_? हरसू से नूर का तिरगी से भी वास्ता हैं मैं नियूश सा सुनता हूँ दिल हर वक़्त उसका शोर मचाता हैं_

-PRAGYA-

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