इस्बात क्या है
कि इश्राक हो गया है
खियांबा में खुशबू है
अहसास हो गया है।
गुमसुम मुहब्बत है
गिर्दाब चल रहा है
ग़मग़ुस्सार है नहीं
बस जूनून चल रहा है।
जाबित बहुत है मन
फिर भी पिघलता है
जर्ब दे वो कितना
फिर भी तो भरता है।
ताक में तसल्ली है
कभी मन हंसेगा
नक्बत विदा होगी
कभी मन खिलेगा।