जी, खिलौने वाला हूँ मैं, खिलौने बेंचता हूँ
गुड़िया,हाथी,घोड़े,और ग़ुब्बारे बेंचता हूँ
मुझे बचपन की यादों का सौदागर ना समझना
चंद ज़रूरतों की ख़ातिर तमाम ख़ुशियाँ बेंचता हूँ
पर अपने ख़ुद के बच्चों को खिलौने नहीं दिला पाता
बर्फ़ का गोला, ठेलें की चाट नहीं खिला पाता
बहरहाल,बच्चें समझदार हैं मेरे, मेरी मजबूरी समझ लेते हैं
गूँधे आटे से चिड़ियाँ बना के जों दूँ, उसको ही खिलौना समझ लेते हैं
मेरे संग साइकल की सवारी उन्हें कार सी लगतीं है
ज़िंदगी ग़म में अभिशाप तो ख़ुशी में उपहार सी लगती है
देखा है मैंने, पैसे वालों के बड़े घरों में तकरार बहुत है,
अपना तो छोटा सा आशियाना है, पर प्यार बहुत है,
पर प्यार बहुत है ❤️
✍️ Rinku Chawla