अपना-अपना सोचे प्राणी,
अपनी खुशियां लागे प्यारी।
स्वार्थी ना बनो,
खुद से ऊपर थोड़ा तो उठो!
त्योहार मनाओ खुशियों से उपहारों से,
रोतों को हंसाओ कपड़ों और सामानों से।
तब तो समझो सब सार्थक है,
वरना खुशियां निरर्थक है।
एक चेहरा भी गर खिला सके,
मन में सुकून पा जाओगे।
सही अर्थों में तब ही तुम,
उल्लास से त्योहार मनाओगे।
निमिषा सिंघल