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ख्वाईश

आज की रात सावन की बरसात है,
क्या पता कल हम मिले या न मिले।
वक्त के सिकंदर मैं कल रहूं या न रहूं
खत्म न हो जाए मिलन के सिलसिले।।
आ कुछ मीठी मीठी दो बातें तो कर ले,
ए रिमझिम फुहार कहीं थम न जाए।
हमारी हसरतों को यों न मायूस करना,
कहीं मेरी ख्वाईश ख्वाईश न रह जाए।।

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