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ख्वाहिश

ख्वाहिशों में ना जाने कितने मर गये,
ज़मीर को अपने बेंच नरक चले गये।
सत्ता को हथियाकर भी बेचैन रहें,
खुशीयों को पाने के लिए अपने आपको खो गये।।

✍महेश गुप्ता जौनपुरी

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