गणपति विसर्जन
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श्रद्धा व सम्मान दिया,
गणपति को घर में विराजमान किया।
रोज ..मोदक, मेवा खिलाते रहे, गणपति जी को… जी भर मनाते रहे।
वस्त्र, आभूषण उन्हें हम चढ़ाते रहें ,
लाड सारे उन्हें हम लड़ाते रहे। सुगंधित पुष्पों की माला अर्पण की…
गाजे-बाजे बजाते ले विसर्जन को को चले।
मानसिक बेड़ियों से जकड़े रहे, बुद्धिहीनो के जैसे उन्हें पकड़े रहे।
गंदले पानी में ही डूबा आए हम शीश, धड़ से अलग…. ना बचा पाए हम।
अंग सारे हुए भंग….
पर देखो भक्ति का रंग…. अपमान करके सम्मान समझ बैठे हम।
सोच सब की है भिन्न पर देवता को खिन्न….. एक महीने मना कर भी कर आए हम।
और पीछे से पुकारते हैं क्या!!!! “गणपति बप्पा मोरिया अगले बरस तू जल्दी आ”
गणपति बप्पा कहते हैं. …
अगले बरस तू मुझे ना बुला …मुझे ना बुला
निमिषा सिंघल