प्रथम मौलिक जन-जन के गुरु
प्रबंधन के पुरोधा,नवाचार की शुरू
आस्था के आकाश पर सूर्य से बिराजमान हैं
धर्म के धरातल पर रचे कृतिमान हैं
मातृभक्ति की वज़ह से पिता की भी की अवहेलना
पिता की विश्राम की खातिर परशु का किया सामना
हाथ में फरसा लिए मूषक पर सवार हैं
एकदन्त दयावन्त बप्पा हमार हैं