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गरिमा

यदि हम कवि हैं
या स्वयं को कवि मानते हैं
तो हमें उस भाषा की गरिमा
रखनी ही होगी,
जिस भाषा का हम
स्वयं को कवि मानते हैं ,
यदि हम इंसान हैं
या स्वयं को इंसान मानते हैं
तो हमें इंसानियत
दिखानी ही होगी,
इंसानियत की गरिमा
रखनी ही होगी।
यदि हम शिक्षक हैं
या स्वयं को शिक्षक मानते हैं,
तो हमें सद् मार्ग की शिक्षा
देनी ही होगी,
शिक्षा की गरिमा रखनी ही होगी।
अन्यथा की बातें तो पाप हैं
बस अनर्गल प्रलाप हैं।

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