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गरीबी का बिस्तर

गरीबी है कोई तो बिस्तर तलाश करो,
रास्तों पर बचपन है कोई घर तलाश करो,
कचरे में गुजर रही है ज़िन्दगी हमारी,
कोई तो दो रोटी का ज़रिया तलाश करो,
यूँ तो बहुत हैं इस ज़मी पर बाशिन्दे,
मगर इस भीड़ में कोई अपनों का चेहरा तलाश करो,
खड़े हैं पुतले भी ढ़के पूरे बदन को दुकानों में,
जो ढ़क दे हमारे नंगे तन को वो कतरन तलाश करो॥
राही (अंजाना)

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