गरीबी की हर शय को मात देने को बैठा हूँ,
मैं उम्र के इस पड़ाव को लात देने को बैठा हूँ,
मजबूत हैं मेरे काँधे कुछ इस कदर मेरे दोस्तों,
के मैं अपने सपनों को एक लम्बी रात देने को बैठा हूँ,
वजन बेशक उठाया है सर पर अपनी मजबूरी का मैंने,
मगर होंसले को अपनी सांसों की सौगात देने को बैठा हूँ।।
राही अंजाना