गांठ बंधे रिश्तों में एहसास क्यों ढूँढ़ते हो
सेहरा की रेत में प्यास क्यों ढूँढ़ते हो
हर शख्स कुछ न कुछ दे ही गया ज़ख्म
ऐसे माहौल में तुम कोई खास क्यों ढूँढ़ते हो
वहां साथ रहते भी कौन कितने करीब थे
ऐसे हालात में फिर वनवास क्यों ढूँढ़ते हो
हर तरफ जब पतझड़ सा ही आलम है
तारीखे क्यों गिनते हो फिर मास क्यों ढूँढ़ते हो
अपने ही घर में अपना वज़ूद अजनबी सा
किसी राह की तलाश में संन्यास क्यों ढूँढ़ते हो
राजेश’अरमान’