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गीत लिखूं

देख कर आज मौसम की ये मस्तिया, दिल में हलचल सी कुछ अब होने लगी। देख कर नूर सा तेरा मुखडा प्रिये, मन में बेताबिया सी है उठने लगी। इस पवन ने शरारत कुछ ऐसी की है, तेरी जुल्फो से उलझने की कोसिस की है। बूंद पानी ने भी कुछ गलतिया की है, तेरी होठों पे आने की कोसिस की है। तेरी आँखो में काज़ल की है घटा, तेरे मुखड़े पे है छायी सावन की घटा। तेरे श्रृंगार के गीत को मैं लिखूं, तुझे देखूँ तो देखता ही रहूँ। तेरी साँसों में ऐसे सम जाउ मैं, छोड़ कर सब तेरा हो जा मैं। तुझको मैं सार जीवन का लिखु प्रिये, गीत लिखु तो लिखु मैं तुझको प्रिय।।

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