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गुंजाईश

मेरी आँखों में ही खुद को निहारा करता है,
हर रोज़ ही वो चेहरा अपना संवारा करता है,

आईने के सही मायने उसे समझ ही नहीं आते,
कहता कुछ नहीं बस ज़हन में उतारा करता है,

गुंजाइय दूर तलक कहीं सच है नज़र नहीं आती,
के वो किसी और के भी मुख को निखारा करता है।।

राही (अंजाना)

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