आज कुछ लिखने का मन किया ,इस मंजर को देखते
एक गुड़िया खुद ही सो गयी, गुड़िया बेचते बेचते
सुबह से भूखी प्यासी, बाजार में है खड़ी खड़ी
हाथों में एक लम्बे डंडे पर बांधी है खिलौनों की लड़ी
शिक्षा से कितनी दूर है वो,पर क्या करे मजबूर है वो
शायद उसको ही घर चलाना जिम्मेदारियों से भरपूर है वो
एक नूर कहीं खो गया, स्कूल के बच्चों को देखते देखते
एक गुड़िया खुद ही सो गयी, गुड़िया बेचते बेचते
जब पेट में उसके अनाज हो तब तो शिक्षा की बात हो
रात हुई,बाजार बंद हुआ सब जाने लगे अपने आवास को
अकेली कहीं दुकानों के किनारे पर गयी झेंपते झेंपते
एक गुड़िया खुद ही सो गयी गुड़िया बेचते बेचते
कोई खास नहीं साथ नहीं,पास नहीं अपना कहने को
और छोड़ो कम से कम ,भगवान एक घर तो देते रहने को
वो बैठ गयी कोने पर जहां उसे सुरक्षा का आभास हुआ
फिर गिनने लगी उन पैसों को कि देखे कितना लाभ हुआ
दुआ मांगती ईश्वर से,कि कोई और ये दिन ना देखे
ईश्वर का आशीष बने रहे, पढ़ें गरीबों के बेटी-बेटे
रात गहरी होने लगी,वो अकेली ठंड को सहते सहते
वो गुड़िया खुद ही सो गयी, गुड़िया बेचते बेचते(