Site icon Saavan

गुरूकुल के वो दिन

क्या कहने उस दिन के
जब गुरूजी हुआ करते थे।
घर में हो या पाठशाला में
तन-मन से बच्चे पढ़ते थे।।
एक आदर था सबके दिल में
ग्रंथ गुरू और ज्ञान प्रति।
होकर उत्तीर्ण कक्षा से सब
योग्य पुरुष सब बनते संप्रति।।
काश ‘विनयचंद ‘ वो दिन
भारत में फिर आ जाता।
रोजगार की कमी न रहती
जीवन में हर सुख छा जाता।।

Exit mobile version