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गुलामी की जंजीरे

गुलामी की जन्जीरों में
जकड़े है ज़िस्म मेरा
इस दिल का सौदा
करें भी तो कैसे।

जिस्म तो जिस्म
रूह भी है बेबस
तुझे मोहब्बत का सजदा
करें भी तो कैसे।

तुम सोचोगे सब बहाने हैं मेरे
जब दोस्त ही कर बैठे बग़ावत
तो अपनी सदाकत की नुमाइश
करें भी तो कैसे।

तुम्हें तो अर्सा हुआ है
हम पर इल्जाम लगाए हुए
जब तुम्ही बन बैठे अदावती
तो हम वफा की गुजारिश
करें भी तो कैसे।

सजा दे देता है जहां
बिना अर्जी सुने
तुम तो साथ नहीं
हम यह मुकदमा लड़ जाएं
भी तो कैसे।

हम गुलामी की जंजीरे
भी तोड़ सकते हैं मगर
खयालातों को आजाद
करें भी तो कैसे।

तेरे दिल में पहले से
कोई रहता है,हम उसमें
बसर कर जायें भी तो कैसे।

इतने पहरे जो तुमने लगा रखे हैं
तू ही बता! तेरे दिल में
आशियां बनाए भी तो कैसे।

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