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गुज़ारिश

तेरे मेरे दरमियाँ जो फ़ासला है कम कर दे।

मेरी आँखों के आँसुओं को तू शबनम कर दे।

तूने वादा किया था मुझसे साथ देने का।

तो साथ चल या फिर ये सिलसिला ख़तम कर दे॥

तमाम उम्र तेरा इंतज़ार कर लूँ मैं,

इंतेहा भी जो अगर हो तो कोई बात नहीं,

यूँ इशारा नहीं इज़हार मुझसे कर आके

इश्क़ तो वो है कि इक़रार खुद सनम कर दे।

 

यूँ तो महफ़िल है मेरे साथ, कई साथी हैं,

फिर भी इस दिल को तमन्ना है एक हमदम की,

ऐसा हमदम कि जो हमदर्द एक सच्चा हो,

छू ले ज़ख्मों को तो ज़ख्मो को भी मरहम कर दे।

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शिवकेश द्विवेदी

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