ग्रीष्म ऋतु की खड़ी दोपहरी,
सुबह से लेकर शाम की प्रहरी,
सूरज की प्रचंड किरणें,
धरती को तपा रहीं हैं,
फसलों को पका रहीं हैं ं,
गुलमोहर की शोभा निराली,
आम, लीची के बाग-बगीचे,
खग-विहग हैं उनके पीछे,
माली काका गुलेल को ताने,
करते बागो की रखवाली,
कोयल की कूक सुहानी,
कानों में रस है घोलती,
गर्म हवाएंँ ,धूल और आँधी,
ग्रीष्म ऋतु की हैं ं साथी,
ताल-तलैया सूख रहें हैं,
बारिश की बूंँदों की आस में,
जल वाष्प बनाकर आसमान को सौंप रहे हैं,
गोधुलि में जब सूरज काका,
अपनी ताप की गात ओढ़ कर,
घर को वापस चल देते,
चँदा मामा चाँदनी संग,
तारों से आकाश सजाते,
गर्म हवा ठंडी हो जाती,
शाम सुहानी ग्रीष्म ऋतु की,
सबके मन को है भाती,
हर मौसम का अपना रंग है,
अपने ढंग से सब हैं आते,
अपना-अपना मिजाज दिखाते,
जीवन में हर रंग है जरूरी,
हमें यह सीख दे जाते ।।