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घर की जिम्मेदारियाँ होती (पिता)

घर की जिम्मेदारियों होती जिनके कंधो पे ।
मान-मर्यादा के सीमा का पालन करे ।
वो धीर पुरूष-मर्द कठिन कार्य करे ।
परिवार चलाये जो अपने मेहनत के पसीने से ।
अर्द्धंगिनी को जो सीता-सावित्री माने ।
अपने मेहनत के पसीने से जो धरा पे स्वर्ग बसाये
वह मर्द-पुरूष पिता कहलाते है ।।1।

जो अपनी संतान के लिए कड़ी धूप में तपते है ।
शरद् में अपनी कोट अपने संतान को देते है ।
फाल्गुन के रंगों में रंग नहीं होते क्या पिता के ?
वो मिष्ठान्न वो पुआ बनते है पिता के पसीनों से ।
ऐसे ही नर जग मे पिता कहलाते है ।
जो अपने संतान के लिए कड़ी धूप में तपते है ।।2।।

रात के निंद और दिन के चैन जो गँवाते है ।
सुनते है सदा अपने मालिक के खड़ी-खोटी ।
फिर भी वो सदा मुस्कुराते हुये जिन्दगी को जीते है ।
उन्हें गम नहीं होता मान-अपमान का,
वो गीता के अध्यायों पे जिन्दगी जीते है ।
कर्म ही महान है, इसीलिए वो सदा कार्य करते है ।।3।।
.– कवि विकास कुमार ।।

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