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घायल परिंदा

क्या करना है मुझे यहां
ठिकाना बनाकर
मन चंचल है लगता है कहाँ
एक ही जगह पर
बदलकर फिर आऊंगा वेश मैं अपना
घायल परिंदा हूँ
गिरा हूँ धरा पर
फिर उठूंगा, चलूंगा
बनाऊंगा आसमां में रास्ता अपना
गिरूंगा तो जरूर पर फिर से उड़ूंगा…!!

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