क्या कहूं, क्या लिखूं कुछ समझ नहींं आता
कुछ बाते हैं जो लफ़्ज का साथ ही नहीं देती
कुछ बाते हैं जो दफ़न है जहन में
कुछ बातें अनकही ही रह जाती है
कुछ न कह कर, कुछ न लिख कर
चलो इक कविता लिख देते हैं
क्या कहूं, क्या लिखूं कुछ समझ नहींं आता
कुछ बाते हैं जो लफ़्ज का साथ ही नहीं देती
कुछ बाते हैं जो दफ़न है जहन में
कुछ बातें अनकही ही रह जाती है
कुछ न कह कर, कुछ न लिख कर
चलो इक कविता लिख देते हैं