छोड़ कर पीछे सबको आज चाँद को घुमाने निकला हूँ,
सच कहता हूँ दोस्त मेरे आज खुद को गुमाने निकला हूँ,
सोया था न जाने कब से समन्दर की बाँहों में यूँ अकेला,
पिघले हुए एहसास को आज फिर जमाने को निकला हूँ,
राही अंजाना
छोड़ कर पीछे सबको आज चाँद को घुमाने निकला हूँ,
सच कहता हूँ दोस्त मेरे आज खुद को गुमाने निकला हूँ,
सोया था न जाने कब से समन्दर की बाँहों में यूँ अकेला,
पिघले हुए एहसास को आज फिर जमाने को निकला हूँ,
राही अंजाना