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चाय और नमकीन

तुम नमकीन थी

मैं चाय था

दोनो एक प्लेट में आकर मिलते थे

वहीं से हमारी गुड मॉर्निंग शुरू होती थी

बगल वाली प्लेट के बिस्कुट

हमें देख जलते थे, इतना जलते थे

कि वहीं पर सिल जाया करते थे

सर्दियों की सुबह

कितनी सुहानी होती है

बस हमें पता था

तुम नमकीन थी

मैं चाय था

दोनो एक प्लेट में आकर मिलते थे

वहीं से हमारी गुड मॉर्निंग शुरू होती थी

एक शाम मयखाने से लौट रहे

चुगलखोर पैमाने ने आवाज दी

कहा चाय जो नमकीन सुबह तुम्हारे साथ होती है

वो हर शाम दारू के साथ बिताती है

बेवफा नमकीन चाय को सबक सीखा गई

सच्ची मोहब्बत तो मुझसे बिस्कुट ने की

जो इंतजार करते करते सिल गए

पर कभी किसी और के न हुए ।

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